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वो भी चुप बैठी रही,
मैं भी गुमसुम खड़ा रहा,
वो तोड़ने पर रिश्ता आमादा थी,
मैं रिश्ता बचाने पर अड़ा रहा।
उसने कहा चले जाओ
नहीं कुछ अब बीच हमारे
मैंने कहा बिना नहीं तुम्हारे
जीवन काटूं किसके सहारे
उसने कहा रात है
मौसम है बारिश का
मर न जाना कहीं
प्राण छूटें द्वार तुम्हारे
इससे अच्छा क्या होगा
मैं सारी रैन
दर पर उसके पड़ा रहा।
वो भी चुप बैठी रही,
मैं भी गुमसुम खड़ा रहा।
~हिलाल हथ'रवी
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