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आँख उठा कर झुका लेती हो,
ये आदत लेगी किसी दिन जान मेरी
ज़रा तो भरम रखो आशिक़ का,
कुछ तो बात मानो जान मेरी।
तरसती तड़पती निगाहों का हलकान मिटे,
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आँख उठा कर झुका लेती हो,
ये आदत लेगी किसी दिन जान मेरी
ज़रा तो भरम रखो आशिक़ का,
कुछ तो बात मानो जान मेरी।
तरसती तड़पती निगाहों का हलकान मिटे,
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