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ख़ता
फ़कत इतनी सी खता आज मुझसे हो गई
सियासत के नुमाया को ही अदाया बोल गई
मेरी आँखों के सामने जो हुआ था उन दिनों
उसकी हकीकत आज मुझसे बयाँ हो गई ||
मेरे हर अल्फाज में सिसकियाँ थी बरहम,
हर पल था बीता नस्तर सा चुभोता
किसी अनजान सूरत की जुल्म की इन्तहा,
देख हदश दिल बैठ गया मेरा मरहम ||
कौन कहेगा, किसको कहे,सबके होटो पर चुप्पी है
चिर निद्रा में सोये पड़े है, देखकर भी सब खामोश खड़े हैं
उजड़ा तो बगलगीर है, मेरी तो रात अभी भी अच्छी है
उनका भी नंबर आयेगा जो आज सबसे पीछे खड़े हैं
शाहनवाज़ अहमद
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