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अधूरीं ख़्वाहिश….

Aditya SharmaAditya Sharma December 27, 2022
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ख़्वाहिश रह गईं मेरी अधूरी,
मैं ज़िंदगी का ग़ुलाम बन गया,
पढ़ली मैंने चंद क़िताबे और मैं आम बन गया,
शोक तो पालें थे आवारगी कें, डाकू-ए हिंद कहलाएँगे,
लूट लेंगे समाज से उसकी कुरीतियाँ,
लाला से उसकी बेड़िया छुड़वायेंगे,
वो सूद जो उसने चढ़ाया था सालों-साल, इस बार उसे चुकाना था,
वो चोर मैं छुपाए बैठा हूँ अंदर, जिसे हर गले से चुराना वो हार था,
वो चमचमाता चमकीला आभूषण, जिसें पहनने को मैं भी आज तैयार था,

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