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तुम्हारे जाने के बाद बस अब कुछ हिस्से बचे है जिन्हें मैं लपेट कर सो जाया करता हूं
तुम्हारे काजल से लिपटी वो आज भी मेरे सिरहाने आकर सोती है ...
अब तो वो आलते की खुशबू भी भूल चुकी है ...
बहुत घुटन है अंदर ये दुनियां सवाल जो उठाती है ...
वहां से गुजरने पर मेरी खुशबू को टटोलता तुम्हारा मन तुम्हारे कदमों के साथ आज भी मेरे साथ चलता है...
आजकल तो मैं एक उदास पेड़ हो गया हूं
जिसकी टहनियों पर बैठे सारे पंछी उड़ चुके हैं
सारे घोंसले सूने पड़े हैं
जिसकी जड़ें अकेलेपन की और बढ़ रही हैं
हम जैसे पेड़ फूल नहीं दे पाते
पतझड़ में सबसे पहले हमारी पत्तियां टूटती हैं
बस उन्ही पत्तियों के निशान तुम्हारे पांव पर भी होंगे जो तुम्हारे साथ मुझे भी लेता चला जा रहा है..
अपने शहर की धूप भेजी है मैने ...
बहुत दिनों से बारिश हो रही थीं तो तुम्हारे रंगो से फुर्सत नही मिल पा रही थीं ...
उसमे से मेरे रंग खोज कर तुम मुझे मेरे रंग वापिस कर देना ....
वही कही धूप पड़ी थीं .....
मैंने तुम्हारे हिस्से का सारा प्रेम दिया है प्रकृति को
प्रकृति लौटा देती है वक्त के साथ
दिया गया प्रेम....
जैसे आवाज़ें लौट आती हैं
पर्वतों से..
~अमन वर्मा
तुम्हारे काजल से लिपटी वो आज भी मेरे सिरहाने आकर सोती है ...
अब तो वो आलते की खुशबू भी भूल चुकी है ...
बहुत घुटन है अंदर ये दुनियां सवाल जो उठाती है ...
वहां से गुजरने पर मेरी खुशबू को टटोलता तुम्हारा मन तुम्हारे कदमों के साथ आज भी मेरे साथ चलता है...
आजकल तो मैं एक उदास पेड़ हो गया हूं
जिसकी टहनियों पर बैठे सारे पंछी उड़ चुके हैं
सारे घोंसले सूने पड़े हैं
जिसकी जड़ें अकेलेपन की और बढ़ रही हैं
हम जैसे पेड़ फूल नहीं दे पाते
पतझड़ में सबसे पहले हमारी पत्तियां टूटती हैं
बस उन्ही पत्तियों के निशान तुम्हारे पांव पर भी होंगे जो तुम्हारे साथ मुझे भी लेता चला जा रहा है..
अपने शहर की धूप भेजी है मैने ...
बहुत दिनों से बारिश हो रही थीं तो तुम्हारे रंगो से फुर्सत नही मिल पा रही थीं ...
उसमे से मेरे रंग खोज कर तुम मुझे मेरे रंग वापिस कर देना ....
वही कही धूप पड़ी थीं .....
मैंने तुम्हारे हिस्से का सारा प्रेम दिया है प्रकृति को
प्रकृति लौटा देती है वक्त के साथ
दिया गया प्रेम....
जैसे आवाज़ें लौट आती हैं
पर्वतों से..
~अमन वर्मा
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