
हमारा भी खयाल यूं रखा करे कोई
तकिए को सीने से लगा हमे भी याद किया कर कोई
जो उंगलियों मे गेसू की लटे यूंही बुन लेते हो
ऐसा ही कोई खयाल हमारा बुने और बुना करे कोई
नींद के हर पहर मे जाग कर देखा करे वो
खयाल वो ख्वाब तो नहीं ऐसा भी सोचा करे कोई
हम से अब ना ही करे इश्क की उम्मीद
हमारे आख़िर मकाम को दिल्लगी ना कहे कोई
इंतजार भी कितना करे कोई जुनून तो हो
हिज्र के लिए ही दम-ए-वस्ल तो रखा करे कोई
सिर्फ़ राहत -ए- वस्ल ही है क्या
जो भागा फिरता था मजनू कोई
काटे दिन हिज्र भरे जो जिए वो फिर भी
फ़िराक़ लिए ऐसी उन्स रखा करे कोई
तुम्हारे एक ख़्वाब की खातिर निंदे बैच दी मजदूरी भर में
जमान मुझे फ़रहाद न कहे पर मांझी से कम भी ना कहे कोई
अर्थ:
गेसू -बाल ,स्त्रियों के बालों की लट; ज़ुल्फ़
पहर - पहर भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बंगलादेश में इस्तेमाल होने वाली समय की एक इकाई है। भारत में यह उत्तर भारत के क्षेत्र में अधिक प्रयोग होती है।
एक २४ (24)घंटे के दिन में ८ (8)पहर होते हैं, यानि एक पहर औसतन ३(3)घंटों के बराबर होता है।
दिल्लगी- आकर्षण।
हिज्र- विरह, वियोग, जुदाई, फ़िराक़।
दम-ए-वस्ल- मिलते समय, मुलाक़ात के दौरान, मिलन का समय
राहत -ए- वस्ल - एक दूसरे का आपस में मिलना। मिलन। comforts of union
उन्स- स्नेह, प्रेम, मुहब्बत, लगाव, उलफ़त, मानूस होने की हालत
फ़रहाद - mystical sculptor lover of Shirin ;Khosrow and Shirin is the title of a famous tragic romance by the Persian poet Nizami Ganjavi, who also wrote Layla and Majnun.
मांझी- जिन्हें "माउंटेन मैन"के रूप में भी जाना जाता है,[3] बिहार में गया के करीब गहलौर गाँव के एक गरीब मजदूर थे।[4] केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली।
शंकरदेव"शाद"
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