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#शब्द धरती

धरती है अनमोल,
इसका मूल्य कहां से तुम चुका पाओगे,
जंगलों को करके नष्ट,
तुम धरती पर प्रलय ले आओगे,
पेड़ों को काटकर,
पौधों को करके नष्ट,
बगीचों में फूल कहां से महका पाओगे,
प्यारी सी सौगात को तुम,
कब तक यूं ही तड़पाओगे,
पानी दिया, वातावरण दिया, वायु दी,
हमारी सांसे तक इसकी कर्जदार रही है,
धरती का कर्ज चुकाने को,
उसको वापिस उसी रूप में लाने को,
कब से तिलमिला रही है,
आओ हम सब मिलकर,
ले अब आज यह प्रण,
धरती को समझकर मां, हम अपनी,
इसका कर्ज उतारेंगे,
पानी को समझकर गंगा,
इसमें कूड़ा करकट ना कभी डालेंगे,
ना हो हवा भी दूषित,
ऐसा कोई समाधान निकालेंगे,
स्वर्ग सुंदर इस धरती को,
भगवान की धरोहर को,
अब हम अपने हाथों से पालेंगे।।
सीमा सूद ✍️ स्वरचित रचना
सतनाम नगर दोराहा,
जिला लुधियाना।।

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