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#प्रीत के रंग
रम जाना चाहूं मैं,
थम जा ना चाहूं मैं,
रंगों की महफिल को,
रंग बन महकाऊ मैं
बंधन बांध के प्यार का,
रंगों की माला पहना हूं मैं,
उज्जवल से इस धारा को,
आज पिचकारी से नहलाऊं मैं,
मौन शब्दों की भाषा को,
रंगों का चोला पहनाऊं मैं,
कहने वाले कहते रहे,
शब्दों का मेला सजाऊं मैं,
दिल में उठते जज्बातों को,
अब रोक ना पाऊं मैं,
गुलाल उड़ा कर, जीवन में,
कान्हा से प्यार निभाऊ मैं
जिंदगी की तस्वीर को,
फिर क्यों न रंगीन बनाऊं मैं,
समय का तकाजा यही,
आज महफिल को सजाऊं मैं।।
सीमा सूद ✍️ स्वरचित रचना
सतनाम नगर दोराहा
जिला लुधियाना।।
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