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मुरझाए हैं क्यों फूल,
बगिया के,
हताश हर कोशिश,
हो रही है,
जिस जीवन पर,
गुरूर था इतना,
वह जिंदगी क्यों,
वक्त के सैलाब में,
खुद को डुबो रही है।।
सीमा सूद ✍️ स्वरचित रचना
लुधियाना पंजाब (दोराहा)
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