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हम शब्दों की भाषा,
नहीं जानते थे,
पर बात समझ जाया,
करते थे,
हम शब्दों को तराशना,
नहीं जानते थे,
ना जाने कहां से शब्द,
जेहन में,
अब आने लगे है,
आशियाना अपना,
हमारे दिल में,
अबे बनाने लगे हैं,
हमने भी मंजूरी,
इनको अब दे दी,
खुद-ब-खुद यह,
कागज में समाने,
लगे हैं,
अहदा इनका,
कागज पर आने,
से बड़ा है,
फूल सा रिश्ता,
इन शब्दों से बना है।।
सीमा सूद ✍️ स्वरचित रचना,
दोराहा जिला लुधियाना।।
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