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दबे पांव मुसीबतें चली आती है,
दस्तक हमारी जिंदगी पर,
हर रोज दे कर जाती है,
कोई समझा दे उनको,
कोई तो बतला दे उनको,
हम अब डर नहीं सकते,
हार तो मान नहीं सकते,
झुकना इनको पड़ेगा,
हम तो अब झुक नहीं सकते,
सारी उम्र, कबजा इन्होंने किया है,
हमें संभालने के लिए,
वक्त कहां दिया है,
दरवाजा खटखटा कर,
दूर से भाग जाती है,
सामने आकर हमसे,
नजरें नहीं यह मिला पाती है
अब जितनी इनका फजूल हो जाएगा,
मन में ध्यान परमात्मा का किया है,
उसने इन मुसीबतों का हल हमें दिया है,
झोली वह खाली भर देता है,
सभी की उम्मीदों को फल देता है।।
सीमा सूद ✍️ स्वरचित रचना
सतनाम नगर दोराहा
जिला लुधियाना।।
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