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औरत का इतिहास पुराना..........
कभी शक्ति कभी मोम का एहसास है,
कभी शक्ति कभी मोम का एहसास है,
पुरातन युगो ने किया औरत का तिरसकार,
कभी सती की तरह, बनना पड़ा उसको,
कभी आग में भी चलना पड़ा उसको,
कभी बेटी हुई तो, मंदिर के बाहर पाई गई,
कभी गंगा के किनारे, उसकी रिहाई हुई,
जंजीरों में बांधा था, समय ने उसको,
अब भी कहां, उसकी सुनवाई हुई,
कदम कदम पर सामना, सबका करती है,
कभी परिवार की मर्यादा, रख रख कर,
खुद सूली पर जा चढ़ती है, दर्द ही दर्द,
दुखों का बवाल, उसे हरदम सताया करता है,
कहानी उसकी क्या है, यह समय बताया करता है,
सामना अपनों का करके हारी, यह है नारी,
अब ना सहना पड़े, गमों का अफसाना उसे,
हाथ जोड़कर आरज हमारी है...............
लौट के आई अब, तलवार मेयान में लिए,
चुपचाप रहकर अब, नहीं है सहना, अब तक सहा,
हक के लिए खड़ी है, दुनिया से जा भिड़ी है,
सहमति दुनिया की पा के औरत......... ।
आज पोलार्ड पर जा चढ़ी है, हिम्मत उसने दिखाएं,
अब ना कोई अगला ना कोई बेचारी कहेगा इसको,
नाम इसका सम्मान से लिया करेगा,
वक्त का पहिया अब आगे बढ़ गया है,
औरत को दे कर हक उसका, समाज आज,
तरक्की की राह पर चल पड़ा है,
सभी काम कर, दुनिया को जीतने निकली है,
मन में हौसला, हाथों में संघर्ष की कहानी,
औरत खुद की पहचान बनाने निकली है,
खुद पर करें के विश्वास, तकदीर को आजमाने निकली है।।
सीमा सूद ✍️ स्वरचित रचना
सतनाम नगर दोराहा
जिला लुधियाना।।
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