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आहट तेरे कदमों की सुनने को,
हम बेकरार हो गए हैं,
बेटा जब से जाकर तू,
परदेस बस गया,
हम बहुत उदास हो गए हैं,
हरदम तुझको ही याद करते हैं,
रहे सलामत हर जगह तू,
मुख से यही फरियाद करते हैं,
कैसे बिताएंगे यह जिंदगी हम जहां,
कैसे यह घड़ियां बिताएंगे,
याद आएगी तेरी बहुत,
अब तो तुझको याद करके,
बस आंसू बहाएंगे,
कर गया आंगन सूना,
सभी और अंधेरा छा गया,
बुढ़ापे का सहारा,
जो हमसे यूं नजरें चुरा गया,
फूल जहां महकते थे,
सूखी पत्तियां ही रह गई,
बूढ़े मां बाप की जिंदगी तो बस,
उलझ कर रह गई।।
सीमा सूद ✍️ स्वरचित रचना
लुधियाना (पंजाब)
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