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शिष्य का कर्म
गुरु की इच्छा में।
तब कर्मफल क्यों?
इस धरती में
मेरा और आपका मन
जुड़े हैं अनंत समय से।
मन की तरंग
जुड़े है उनके इच्छा से।
मैं और आप सिर्फ उनके हाथ का खिलौना।
तब कर्मफल क्यों?
काम आपका,
लेकिन फल मेरा।
ऐसा क्यों?
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