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ज़िंदगी की रेलगाड़ी रुक गई।
जीवन चलता है ज़मीन को छू कर।
सुख का दर्द में
दुःख का आराम में
ज़मीन टूट चुकी थी।
सुख और दुःख मिलाकर जीवन-
दोनों अलग हो गए एक दूसरे से-
इसलिए टूटी ज़िंदगी।
एक जीवन के ऊपर
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