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ज़िंदगी की रेलगाड़ी रुक गई। 


जीवन चलता है ज़मीन को छू कर।

सुख का दर्द में

दुःख का आराम में

ज़मीन टूट चुकी थी।

सुख और दुःख मिलाकर जीवन-

दोनों अलग हो गए एक दूसरे से-

इसलिए टूटी ज़िंदगी। 



एक जीवन के ऊपर एक।

एक जीवन के नीचे एक।

 

बात रुक गई।

सांस रुक गई। 

दृष्टि रुक गई।

चिंता रुक गई।

शक्ति रुक गई।

 

ज़िंदा हूँ मैं

और सोच रहा हूँ-

मेरा एक हाथ में सुख,

दूसरा हाथ में दुःख। 





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