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मैं आज़ाद हूं-
मैं आज़ादी के बारे में जनता हूं।
मैं आज़ाद नहीं हूं-
वे लोग जैसे मुझे बतायें हैं आज़ादी के बारे में,
उससे ज्यादा मुझे जानने नहीं देतें।
मैं किताब में पढ़ा हूं
आज़ादी के बारे में,
लेकिन वे लोग मुझे एक और नई किताब
लिखने नहीं देतें।
सिर्फ पढ़ कर कुछ नहीं होता,
लिखना भी चाहिए उसके साथ साथ।
जो पढ़ा लिखा एक साथ में करता है,
वह सिर्फ आज़ाद है पूरी तरह से।
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