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मरुस्थल की धूप में,
सुखे हुए कूप में,
तेरे स्वच्छ सुन्दर रुप में,
लहरते गेंहू की बाल में,
मेरे सुन्दर भूतकाल में,
फंसे हुए उस जाल में,
खिलखिलाते पेड़ो की छांव में,
शहर में या गांव में,
तेरे उस कोयल की काँव में,
नदिया की कल कल धार में,
पर्वत की मौन चीत्कार में,
मेरे इक छोटे से संसार में,
है मुझे तेरा इंतेजार ।
सुखे हुए कूप में,
तेरे स्वच्छ सुन्दर रुप में,
लहरते गेंहू की बाल में,
मेरे सुन्दर भूतकाल में,
फंसे हुए उस जाल में,
खिलखिलाते पेड़ो की छांव में,
शहर में या गांव में,
तेरे उस कोयल की काँव में,
नदिया की कल कल धार में,
पर्वत की मौन चीत्कार में,
मेरे इक छोटे से संसार में,
है मुझे तेरा इंतेजार ।
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