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कुष्ठ-रोगी !
अपने हाथ-पेैरों को
हर पल खोता है
अपनी अनामिका से
अपने प्रिय ईश्वर को
तिलक नहीं कर सकता
किन्तु यह रोग !
आँखों को नहीं होता
ताकि देख सके रोगी
अपने मन को गलते हुए -
कहानियां कहती हैं दिनों को
उपन्यास कहता है युगों को
कविता कहती है क्षणों को
इनके बीच जो
छूट ! जाती हैं बातें
वो कवि का
कुष्ठ-रोग बन जाती हैं ...
~ अबीर
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