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लड़का हूं पंडित का मेरी क्या खता है
मैं नहीं जानता उसकी जात क्या है
धोबन है कहारिन है या कुछ और है
जो भी हो जात हुस्न की सिरमौर है
जैसी भी है उसकी निगाहें शमशीर है
चलाती मेरे दिल पर इश्क़ के तीर है
अधरों से उसके दिल पर अंकित हो
इस क़दर अब मेरा प्यार प्रस्फुटित हो
ये झूठी परंपरा ये बेकार रीति-रिवाज
क्या हमें एक होने देगा ये समाज।
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