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रोजमर्रा कि हैं तकलिफें, जहाँ में सुखों का तिरस्कार।
श्री जन कबूल तो करियें, इस अजनबी का नमस्कार ॥१॥
बताएगें कुछ राज कि बातें जहां कि हैं हमारि पैदाइश।
आया हैं हम यहाँ वक्त बिताने को ढुंढ के रें गुञ्जाइश॥२॥
भडासें तो है दिल में बहुत सी, पता नहिं क्या निकलेगें।
यत्न करेगें ना हो आलोचना आपकी, ना हम पें खेलेगें॥३॥
बर्फ कि सबसे उचें चोटियों कि तलहटि में बसेरा हमारा।
भिनि सी खुश्बु गुराँस कि राजधानी बस शिव हि सहारा॥४॥
चन्द्र सूर्य सत् के साक्ष हैं, जिनकें ध्वज के निलें किनारें।
सिम्रिक रङ्ग शान्ति के रें दूत, शिव शक्ति त्रिकोण हमारें॥५॥
चत्वार का दिन माह ग्यारवां, दुनियाँ में गिणते विक्रमी।
बुजुर्गो ने रखि हैं नाज, लोग जहां के कहातें पराक्रमी॥६॥
हराभरा उसपर भि मिठा हैं जिनका वन उपवन नीरा।
पर्वतो के श्रृंखला कन्दमूल के भक्षी वो वनवासी धिरा॥७॥
कुल देवी भवानी रक्षा करें कालिके भद्रा सर्वानन्दकरी।
जयतु सर्वेशां नमस्ते नमस्ते नमस्ते रूद्रा रस जश करी॥८॥
आधि-व्याधि-उपाधि हरे सबकी, तभि हैं वे त्रिशुल वालें।
क्लेश कलि कतराए सुन, लीलाधारी हैं वे डुगडुगी वालें॥९॥
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