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रोको यह समर, त्रासदी जग की,
शत् सदी सहस्त्र साल पछताओगे;
मिट्टी माता का गर्भ चीरने वालों,
हे दानव, बस मृदांश रह जाओगे।
युद्ध-कुध्द है नहीं ये-
शुध्द शासक का यूं रे जीवन;
जनता रहे सुखार्थ सत्य-
हो यहीं नृपति का साम्राज्य मन।
हे शासक शोभित नहीं तुझे-
नत्-नत् जनता का मरना;
तेरे बैर मोल के मध्य यहां-
जनता को क्या करना?
देखना पड़ा ऐसा असित दिवस ये,
हाय जनों की कष्ट कांति का;
रोको महाभारत के गज-अश्व रथ,
आह्वान हो केवल शांति का!
.
वह शासक कैसे हो सकता
जो युध्द-क्रुद्ध-स्वार्थत्व को जनता हो;
है शासक कुशल प्रवीर वहीं,
जिसके शासन में शांति हो समता हो।
- सत्यव्रत रजक
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