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ओ मधु :
जो खड़े हुए गिरते-उठते,
विह्वल कपोल कंठ पाते,
फटती सूखी वाणी अर्थक,
जिनके स्वर धूमिल हो जाते।
उनको नव विश्वास,चेतनता दे दो;
तनिक शेष मादकता दे दो।
तनिक शेष मादकता दे दो।।
टूटी तिर्यक सीढ़ी श्रृंख पर,
चढ़-चढ़ कर परिछाई हारी,
पड़ रहीं तपी हथेली
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