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सुब्ह हुई तो जरू़र पतन लगा रहेगा,
मुझे दबाने को यहां जतन लगा रहेगा।
कोई समझाओ दिए को कि खड़ा रहे,
यहां नयी आंधियों का दौर लगा रहेगा।
कल कोहराम था यहां भूकंप से यारों,
आज बाढ़ है, कल कुछ और लगा रहेगा।
आंच पड़ते-पड़ते जल गए खत यह,
कल नए अखबार में छपना लगा रहेगा ।
जरा सा तेल मयस्सर नहीं वरना,
नयी-नयी चिंगारियों का जलना लगा रहेगा।
'मैं आग में अंगार हो गया नरम नहीं',
यहीं नये शख्स का नारा लगा रहेगा।
✍️- सत्यव्रत रजक
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