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पेट की रोटी को मैं रोज दर-दर भटक सा रहा,
कोई बच्चा मेरे सीने पर हरदम सिसक सा रहा;
सड़कों पर धूप में धूमिल हुआ जल खाक मैं,
ओ देवता रे आज तू आसन पर बैठ गा रहा।
- सत्यव्रत रजक
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