
Share0 Bookmarks 80 Reads1 Likes
कवि पियों तुम होली हाला-
-----------------------------------------
मदिरालय में कितने प्याले,
कितने गोरे कितने काले,
रंगीनी हाला रंग डाले,
खनकेंगे बन एक प्याला;
कवि पियों तुम होली हाला।
जिनके नयनों बहें नीर,
जिनको हाला है अधीर,
हैं ढुलक रहे हिय अश्रु हीर,
आज़ रंगों अंतर पट जाला;
कवि पियों तुम होली हाला।
अगणित रंग भरे ये प्याले,
कई टूटे-फूटे, कई काले,
अंतर तल विश्वास जगाले,
मधु की जिनमें विघटित हाला;
कवि पियों तुम होली हाला।
बदल रहा हो दिवाकार,
अब भी हाला हो स्वीकार,
मनु के असीमित दिव्याकार,
एक रंगी हो जग मधुशाला;
कवि पियों तुम होली हाला।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments