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विरूद्ध वयार दिशा से
अंध भय गहन निशा से
घोर रोर चपल तृषा से
भाग मत मनुज मन
जाग श्रम जाग जन।
रक्त तप्त अनल से
शूल सम अचल से
पंथ त्रास सबल से
हार मत मनुज मन
जाग श्रम जाग जन।
निशीथ के दंश से
महारूह अंश से
दिक् थमे ध्वंश से
रार मत मनुज मन
जाग श्रम जाग जन।
— सत्यव्रत रजक
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