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बदलती धूप
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बदलती धूप का भरा खेत भी देखा है,
नजारा बादलों को उगलते रेत भी देखा है।
गुफ़्तुगू की इमारतों से ढह रहे हैं शब्द भी,
इन शब्दों को शहर-शहर घूमते भी देखा है।
आज़ हरे दरिये भी बंजर पड़े हुए है,
बातों का बना एक समंदर भी देखा है।
आज़ जिन्दगी को बदलने के लिए,
रेत के पुल तले नदी को बहते भी देखा है।
आजाद उड़ा परिंदा तो पर काट लिए,
हमनें तो इन्हें जमीं पर मरते भी देखा है।
कई मसीहों को आसयाना ढूंढते,
आबाद सड़कों पर टहलने भी देखा है।
आजाद हैं हम, पर आजादी तो गुमसुदा है
हमनें तो चिराग़ों को कुचलते भी देखा है।
हिम के आंगन में अंगार उगा दो यारो,
हमनें तो पत्थरों को पिघलते भी देखा है।
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08/07/2021
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