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बेटी ना हो तो वंश को चलाएगा कौन?
क्या बेटा? कदापि नहीं,
तो फिर बेटी को इस समाज में क्यूं बेटें सा प्यार नहीं?
सर्वत्र बेटीयो को क्यूं समान अधिकार नहीं?
जन्म-मरण के जीवन पथ में क्यूं मिलता न सम्मान,
होती जलील, रहती सभीत, क्षण-क्षण उन्हें मिले अपमान,
कुलकलंकिनी नाम पड़े , जब जन्म ले धरा पर आए,
पूरे कुटुम्ब के आनन पर जैसे मातम सा छा जाए,
बेटी के धरा अवतरण पर, क्यों झूठी खुशी दिखाते हैं?
वही कुटुम्ब बेटों के जन्म पर, ढोल नगाड़े बजाते हैं,
इसमे उनका
क्या बेटा? कदापि नहीं,
तो फिर बेटी को इस समाज में क्यूं बेटें सा प्यार नहीं?
सर्वत्र बेटीयो को क्यूं समान अधिकार नहीं?
जन्म-मरण के जीवन पथ में क्यूं मिलता न सम्मान,
होती जलील, रहती सभीत, क्षण-क्षण उन्हें मिले अपमान,
कुलकलंकिनी नाम पड़े , जब जन्म ले धरा पर आए,
पूरे कुटुम्ब के आनन पर जैसे मातम सा छा जाए,
बेटी के धरा अवतरण पर, क्यों झूठी खुशी दिखाते हैं?
वही कुटुम्ब बेटों के जन्म पर, ढोल नगाड़े बजाते हैं,
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