
मैं शून्य था अब भी हूूँ।
कुछ चीजें कभी पूर्ण नह ीं होती, अधूरा तब भी था अब भी हूूँ।।
वो कहते हैं खुश रहो जीवन की प्रगतत में।
मैंने भी चुन लिया खुश दिखना जीवन की इस ववषम िुगणतत में।।
जीवन में सन्नाटा काटता रहता है।
पर मानव हूूँ, मन तब भी िूसरों को खुश करता था अब भी करता रहता है।।
जीवन के हर सन्नाटे एकाींत नह ीं होते।
हर अन्तववणरोध व अकेिापन सिा तन्हाई नह ीं होते।।
जीवन मे कई बार सब कुछ कसैिा होता है।
महफििें भी होती है और शाम भी सबाब भी फिर भी इींसान अकेिा होता है।।
कोई कहता है आपको तो अब सबकुछ लमि गया न।
जजींिगी की सभी जरूरतें हैं पूर सििता का कमि खखि गया न।।
मैंने भी बस यूीं ह मुस्कुराते हुए सर दहिा दिया।
और उससे भी दिि से दिि लमिने का बस भरोसा दििा दिया।।
अकेिापन कभी-कभी अब खुि ह बात करता है।
वो कहता है तुम्हारे मन का ये सन्नाटा बस गमों की ह बारात करता है।।
सन्नाटा तो सन्नाटा है ये अनन्त गहराई में भी होता है।
और अनींत आकाश से ऊपर शून्य में भी बेखौि होकर सोता है।।
जब हमारे ऊपर नीचे बस सन्नाटा ह है।
तो हम फकतना भी दिखावे की खुशी का ढोि पीट िे अींत मे सींग बस सन्नाटा ह है।
©@SatyaSurendraM
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