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आज खामोश फिर बैठा हूँ मै
समुन्दर के इस पार
उनके सवाल आज भी हैं वही
वो पूछते हैं कौन हूँ मैं
इतने राज क्यूँ हैं मन में मेरे |
आज कुछ है कहने को और बताने को
आज खामोश फिर बैठा हूँ मै ||
तपती धुप में अगर एक पत्ते की छाँव महसूस कर पाते
तो ये जान जाते क्या महसूस करता हूँ मैं
भरी बरसात में अगर एक नाख़ूनभी सुखा रख पाते
तो ये जान जाते कितना अकेला हूँ मैं
बेकाबू भीड में खुद को रोक पाते
तो ये जान जाते कितना संभला हूँ मैं
ठंडी रात में चाँद की तरह बेख़ौफखुले सो पाते
तो ये जान जाते किस तपन में हूँ मैं
ये तो फासलें हैं हममे
इसका गुनेहगार हूँ मैं l
लेकिन फिर भी , समुन्दर के उस पार जो आइना है
उसके इस पार खुदको और उस पार मुझे देख पाते
तो ये जान जाते की कौन हूँ मै ||
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