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उमंग से उसकी लड़ाई थी।
वह आसमा में उड़ने के लिए अाई थी।
जमीन पे उसकी पंख की परछाई थी।
उसने आसमा से ज्यादा जमीन से दिल लगाई थी।
दूसरों से नहीं इस सामाजिक सोच से लड़ाई थी।
सच के लिए उसने ना जाने कितनी ,
बार अग्नि में अपनी देह जलाई थी।
पुरुष प्रधान देश ने उसकी गला दबा के की विदाई थी।
सिर्फ रोने और दर्द दिखाने के लिए समाज ने की ,
उसकी बढ़ाई थी।
बेबाक बोलने के लिए उसके जुबा पे ,
लोगो ने बेड़ियां लगाई थी।
इतना दर्द सहने के बाद स्त्री ने छेड़ी ,
अपनी सम्मान के लिए लड़ाई थी।।
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