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हर शाम मैं राह भटक जाता हूं, हाथ में कुल्हड़ लिए तेरे छत पर नजर गड़ाता हूं। इंतजार में तेरे दर्जन कुल्हड़ फोड जाता हूं। मैं आजकल मन कुछ ऐसा बेहलाता हूं।
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