
।। मैं क्या चाहता हूं।।
ना इश्क, ना मोहब्बत, ना प्यार चाहता हूं।
बस थोड़ी सी नींद और थोड़ा आराम चाहता हूं।।
बरसों से थी जिससे मिलने की ख्वाहिश, वो आज आंखों के सामने है।
मगर मैं आंखों को मूंदकर, हकीकत से दूर जाना चाहता हूं।।
बस थोड़ी सी नींद और थोड़ा आराम चाहता हूं।।
पहुंचा हूं उस मुकाम पर, जो कभी सपना - सा लगता था।
कितनी रातें काटी जागकर, वो संघर्ष अपना - सा लगता था।।
उस टूटे पुराने खाट पर, फिर से सो जाना चाहता हूं।
बस थोड़ी सी नींद और थोड़ा आराम चाहता हूं।।
सूरज हो जाना मुमकिन नहीं, बस दीपक सा जल जाऊं इतना बहुत है।
खुद जलकर भी, औरों का उजाला बनना चाहता हूं।।
बस थोड़ी सी नींद और थोड़ा आराम चाहता हूं।।
उठकर कल सुबह, जुट जाऊंगा फिर से।
दिया बनकर, किसी की रोशनी के लिए जल जाऊंगा फिर से।
बस आज की रात सो जाना चाहता हूं।
थोड़ी सी नींद, और थोड़ा आराम चाहता हूं।।
- संयम दवे
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