
Share0 Bookmarks 17 Reads0 Likes
मैं अपनी मोहब्बत का कुछ ऐसे इम्तिहाँ लूँगा
उसकी गलतियों को, नादानियों का नाम दूँगा
मैं वाकिफ़ हूँ उसके कहानियों के हरएक किरदार से
वो सुनाएगी और, मैं जान के अनजान बन जाऊंगा
मुझे पता है, ये इल्म है उसको की हमारी मंज़िल नहीं
उसके झूठे दिलासे को भी, सच से पाक मान जाऊंगा
उसकी भींगीं आँखों में, मुझे रात का ख़ौफ़ दिखता है
ख़ुद को ख़ाक करके भी, मैं शाम को रोक न पाऊंगा
हमारी कहानी अब हम नहीं, मैं और तुम में बंट गयी
उसे कहीं और खुश देख, कबतक समझदार रह पाऊंगा
...मैं अपनी मोहब्बत का कुछ ऐसे इम्तिहाँ लूँगा ।
उसकी गलतियों को, नादानियों का नाम दूँगा
मैं वाकिफ़ हूँ उसके कहानियों के हरएक किरदार से
वो सुनाएगी और, मैं जान के अनजान बन जाऊंगा
मुझे पता है, ये इल्म है उसको की हमारी मंज़िल नहीं
उसके झूठे दिलासे को भी, सच से पाक मान जाऊंगा
उसकी भींगीं आँखों में, मुझे रात का ख़ौफ़ दिखता है
ख़ुद को ख़ाक करके भी, मैं शाम को रोक न पाऊंगा
हमारी कहानी अब हम नहीं, मैं और तुम में बंट गयी
उसे कहीं और खुश देख, कबतक समझदार रह पाऊंगा
...मैं अपनी मोहब्बत का कुछ ऐसे इम्तिहाँ लूँगा ।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments