
Share0 Bookmarks 149 Reads3 Likes
तक़दीर मेरे संग द्वन्द्ध अपनाए बैठी है
मेरा आकाश छूने का प्रण है,
और ये मुझे जमीन पर जमाए बैठी है..
'तकदीर' कितना भी गिराना चाहे
काली घनी रातों मे रखना चाहे,
इसके तूणीर के हर तीर को काट
ये निगांहे प्रभा की ओर देखना चाहे..
मेरा आकाश छूने का प्रण है,
और ये मुझे जमीन पर जमाए बैठी है..
'तकदीर' कितना भी गिराना चाहे
काली घनी रातों मे रखना चाहे,
इसके तूणीर के हर तीर को काट
ये निगांहे प्रभा की ओर देखना चाहे..
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments