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कर दो दूर इन चरागों को
अब अंधेरे पसंद हैं मुझे
इकलौता होगा वो चांद मगर
अब तारे पसंद हैं मुझे
कह दो इन हवाओं से
अब सन्नाटे पसंद हैं मुझे
फूलों का भी कुसूर है क्या
अब कांटे पसंद हैं मुझे
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