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लोग खामखा उसे बदनाम करते है
उसे छूने को बेवजह इतराते है
उस के नशे में धुंद होनेसे कतराते है
मयखाने में जानेसे न जाने क्यूं शरमाते है
उसके एक जाम में ना जाने कितने खो जाते है
मय को पाने के लिए क्या कुछ न करते है
नशे में चूर होकर जाने कौनसे ताल पर झूमते है
खुशी हो या गम सब उसे हमेशा याद करते है
मय को चूमने को न जाने कितने तरसते है
दुनियां का सारा भार उसे पीते ही भूल जाते है
एक बार इस का नशा चढ़ जाए तो सौ दर्द मिट जाते है
कौन अपना कौन पराया सब भूल जाते है
ना कोई ऊंच नीच जानते है
ना कोई धर्म , जाती , लिंग का भेद मानते है
इतने सारे गुण होते हुए भी हम अवगुण परखते है
मय को लोग न जाने क्यूं बदनाम करते है...!!!!!
©संकेत कै भरेकर
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