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कुछ खट्टी-मीठी बातों को,
कुछ यादगार मुलाकातों को,
कुछ अनकहे जज़्बातों को,
कुछ धूल पड़ी किताबों को,
कुछ अधूरे रह गए ख्वाबों को,
कुछ जंग लगी संदूकों को,
कुछ उसमें रखी खिलौने वाली बंदूकों को,
कुछ पुरानी फटी तस्वीरों को
कुछ हाथ की फटी लकीरों को,
चलो! आज फिर से सीते हैं,
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