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हमसे भी एक बार ये गुनाह ऐ अजीम हुआ
उनसे इश्क़ हुआ और वो भी बेइंतेहा हुआ
लाजमी था खुद को भूल जाना उसके इश्क़ मे
खुद को याद आये हुए हमको जमाना हुआ
समझा रहे थे दोस्त मुझे इश्क़ की बारिकीया
दोस्त सब ये वोही थे जिनको कभी इश्क़ ना हुआ
मिले कोई और जिन्दगी तो जी लेंगे अगली बार
इस जिन्दगी में मै ना खुद का ना किसी और का हुआ
जीन्दगी के सफर में यु तो बहोत लोग मिले लेकिन्
रहगुजर थे सब मेरा कोई हमसफ़र ना हुआ
अब किसकी नजर करे हम अपने शेरो को
अब ना कोई समझनेवाला ना कोई सुनानेवाला हुआ
महफ़िलो में जाना हमने अब छोड़ दिया है साहिब
लोग कहते है शायर तो अच्छा है पर बदनाम बहोत हुआ
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