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सुनो,
अब जबकि मैं,
नहीं कह सकता,
कहीं खुलकर,
कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ,
मैं लिखूंगा कविताएं,
तुम्हारे लिये,
बिना तुम्हारा नाम लिये।
तुम पढ़कर उन्हें,
मुस्कुरा देना,
और याद करना मुझे,
बिना मेरा नाम लिये।
और इस तरह निभायेंगे,
दोनों प्रेम,
अपने अपने हिस्से का,
बिना किसी का नाम लिये।
-संजू
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