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गोबर से लीप रही घर की ड्योढी वह बालिका
रूखे बालों में अटका कूढ़े से मिला रिबन पुराना
नन्हे कोमल बदन पर अपने,
आधा ढका वस्त्र नीचे खींच रही वह बालिका।
कौतूहल से भरी आँखें माँ संग कूड़ा बीनती ऐसे
नन्हे सपनों को अपने चुन रही हो वह जैसे।
साँझ हुए जाना फुटपाथ हाथ फैला माँगने भीख
डर लगता है माँ, हाथ लगाता वो मुच्छड़ मालिक
समझा ना पाए माँ को वह बाल
रूखे बालों में अटका कूढ़े से मिला रिबन पुराना
नन्हे कोमल बदन पर अपने,
आधा ढका वस्त्र नीचे खींच रही वह बालिका।
कौतूहल से भरी आँखें माँ संग कूड़ा बीनती ऐसे
नन्हे सपनों को अपने चुन रही हो वह जैसे।
साँझ हुए जाना फुटपाथ हाथ फैला माँगने भीख
डर लगता है माँ, हाथ लगाता वो मुच्छड़ मालिक
समझा ना पाए माँ को वह बाल
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