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गोबर से लीप रही घर की ड्योढी वह बालिका
रूखे बालों में अटका कूढ़े से मिला रिबन पुराना
नन्हे कोमल बदन पर अपने,
आधा ढका वस्त्र नीचे खींच रही वह बालिका।
कौतूहल से भरी आँखें माँ संग कूड़ा बीनती ऐसे
नन्हे सपनों को अपने चुन रही हो वह जैसे।
साँझ हुए जाना फुटपाथ हाथ फैला माँगने भीख
डर लगता है माँ, हाथ लगाता वो मुच्छड़ मालिक
समझा ना पाए माँ को वह बालिका।
देखती आते जाते गाडियों में सजे कुछ अपने से दिखते लोग
कौन जगह से आते यह सब?
मुझ को भी जाना जहाँ रहते यह लोग
किससे पूछे सोच रही बैठी वह बालिका।
रात हुई मैली गुदड़ी में छुपी माँ से सटकर सो जाती
नए वस्त्र,गाड़ी में खुद को देख,
स्वप्न में मुस्कराती वह बालिका
सोती आँखों के कोर से एक बेपरवाह
आँसू ढलकाती वह बालिका ।।
संगीता जी ए
रूखे बालों में अटका कूढ़े से मिला रिबन पुराना
नन्हे कोमल बदन पर अपने,
आधा ढका वस्त्र नीचे खींच रही वह बालिका।
कौतूहल से भरी आँखें माँ संग कूड़ा बीनती ऐसे
नन्हे सपनों को अपने चुन रही हो वह जैसे।
साँझ हुए जाना फुटपाथ हाथ फैला माँगने भीख
डर लगता है माँ, हाथ लगाता वो मुच्छड़ मालिक
समझा ना पाए माँ को वह बालिका।
देखती आते जाते गाडियों में सजे कुछ अपने से दिखते लोग
कौन जगह से आते यह सब?
मुझ को भी जाना जहाँ रहते यह लोग
किससे पूछे सोच रही बैठी वह बालिका।
रात हुई मैली गुदड़ी में छुपी माँ से सटकर सो जाती
नए वस्त्र,गाड़ी में खुद को देख,
स्वप्न में मुस्कराती वह बालिका
सोती आँखों के कोर से एक बेपरवाह
आँसू ढलकाती वह बालिका ।।
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