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फेंक पत्थर कितने भी, सह लूँगा,
पत्थरों से, अब मेरा है याराना हुआ।
ज़ख़्म नहीं देंगे , आ लगेंगे गले ये,
'पत्थर' तेरे, अब मेरे इतने क़रीबी हुए,
कि आ कर पास, ये 'पत्थर' तेरे,
ज़ख़्म अपने, मुझे हैं दिखाने लगे।
-संदीप गुप्ता
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