जहाँ भी जाता हूँ, एक भीड़ पीछे आती है,
सुकून से दो पल ज़िंदगी ये कहाँ बिता पाती है।
जिस दिन हो जाएगी इंतहा मेरे सब्र की,
नक़ाब चेहरे पर लगा लूँगा कई,
और भीड़ में हो जाऊँगा मैं भी शामिल।
-संदीप गुप्ता SandySoil
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