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पापड़ अचार बना लेती हूँ,
खीर और पकवान भी।
पिज़्ज़ा, पास्ता, इडली, ढोकला,
पराँठा और भात भी।
बैंक भी चला लेती हूँ,
और जहाज़ भी।
अस्पताल भी चलाती हूँ,
बीमार भी संभाल लेती हूँ।
ख़र्च करती हूँ,
पर बहुत कुछ बचा भी लेती हूँ।
समय विकट हो कभी तो,
घर में रुके हों सभी तो,
हाँ!
सबके लिए कुछ ना कुछ बनाकर,
समय बचाकर,
घर में ही मास्क भी बना लेती हूँ।
नारी हूँ,
सब सम्भाल लूँगी मैं।
१ ही सौ पर भारी हूँ।
-संदीप गुप्ता SandySoil
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