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ज़िंदगी!
माना कि तय हुआ था,
कि तू इम्तिहान लेगी।
पर ये क्या?
ना तारीख़ तय की,
ना समय,
आ गयी तू, लेने इम्तिहान।
ऊपर से प्रश्न पत्र भी ऐसा,
कि न पढ़ा हुआ काम आए,
न कमाया हुआ।
इतना ज़ुल्म क्यों?
चाहती क्या है तू?
चालबाज़! कमबख़्त!
सुन! !
ये जो कुछ हो रहा है,
तेरे भले के लिए ही तो है।
इम्तिहान ना देना हो , मत दे,
पर ज़ुबान पर तो लगाम रख।
-संदीप गुप्ता SandySoil
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