न भीड़ है पीछे, न क़ाफ़िले हैं जुड़े,
अकेला ही करता हूँ मैं, ये सफ़र-ए-ज़िंदगी।
आफ़ताब को मुट्ठी में बाँधने निकले हैं जो,
ज़िंदगी के सफ़र में अक
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