
धरती का सर्वश्रेष्ठ एक विषविधि: (virus)से सहम गया।अहम् का जो वहम् था वो एक क्षण में निकल गया ।न खींची लकीर इस रोग ने ,हर वर्ग और धर्म इसमें सिमट गया।
निकल पड़ें है गंतव्य को पद यात्रा पर फटी कमीज,नग्न पैर व घिसे से चप्पल मे निर्धन। भारी
मन से ,भूखे तन से
वे गण।मन में विचरण करते-हमने सबका घर बनाया, हमारा कोई घर नही। खून पसीना दिया हमने,हमारा ये शहर नही। क्या मेरे परिश्रम का कोई मूल्य नही।चांद पर पहुंचा इंसान क्या अब इंसान तुल्य नहीं।आस हमारी बहुत ही छोटी थी,दो जून की रोटी की।जिस को हमने विश्वास किया,उसकी नियत ही खोटी थी।
हम तो उनके महत्वाकांक्षाओ के मोहरे है। आशा उनसे कर बैठे जिनके चरित्र ही दोहरे है।
क्या आस करे उनसे जो मौसम की तरह बदल गये,लोलुपता मे बहक गये!अब जाग सके तो जाग ले बंदे ,बंद कर ये विधवनसक धंधे।विश्व मे यू नही मचा हाहाकार।प्रकृति का है ये प्रतिकार। मनमानी की हो गयी अब सीमा पार, जीने के तरीको पर कर ले तू पुनर्विचार। अब न कर प्रकृति का तिरस्कार।धरती का सर्वश्रेष्ठ एक विषविधि: से सहम गया।अहम् का जो वहम् था वो एक क्षण में निकल गया ।
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