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तुम चले और चलते रहते
न रूके तुम न थके तुम।
नापते रहे तुम धरा व नभ
कब कौन छूटा न पता चला।
पहुंच क्षितिज रह गया सब पीछे
न हारे तुम न जीते तुम।
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तुम चले और चलते रहते
न रूके तुम न थके तुम।
नापते रहे तुम धरा व नभ
कब कौन छूटा न पता चला।
पहुंच क्षितिज रह गया सब पीछे
न हारे तुम न जीते तुम।
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