झूठा सच's image
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घर से जब पहली बार निकला था

 तो उस ने झूठ बोलना सीखा था

 क्या याद है तुम्हें उस झूठ बोलने पर वो कितना बिफरा था 

लगा था घर का सारा सिखा सिखाया इधर उधर बिखरा था

सच से नहीं सच के दिखावे से डरता था

ऊपर से साफ दिखने वाले 

पर अंदर की मिलावट से डरता था

फिर कड़वे सच बोलने पर 

उसने कितने अपनों को खो दिया

उसने भी मीठा झूठ बोलने का हुनर बो दिया

धीरे धीरे झूठ छोटे मझले और बड़े होते गये

सच की रोशनी में झूठ के काले साये खड़े होते गये

 जब उसका झूठा सच जमाने से मिला 

अन्य की तरह अपने झूठ को ही सच्चा पाया

लगता था अब सही जगह आया 

अपने झूठे सच के लिये वो कितने कड़वे घूंट पीये

वो सच्चा है अपने सच के लिये और झूठा अपने झूठ के लिये

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