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ये दौर भी कैसा दौर है
ज़िंदा है पर ज़िन्दगी से दूर है
अपने ही घर में बंद होने को मज़बूर है
ये दौर भी कैसा दौर है
हाथ मिलाना अब वर्जित है
तभी तो सांसें अर्जित है
ये दौर भी कैसा दौर है
चेहरे पर भी पहरा है
मुस्कराहटो पर भी असर गहरा है
ये दौर भी कैसा दौर है
दूरियां ही नया मानक है
भाव अंतरतम कहा बाधक है
ये दौर भी कैसा दौर है
सीमित होता हुआ जल है
हाथ धोना हर पल है
ये दौर भी कैसा दौर है
न बनना भीड़ का हिस्सा
बन जाओगे यादों का किस्सा
ये दौर भी कैसा दौर है
खामोशियों में भी शोर है
जीवन की डोर कही और है
ये दौर भी कैसा दौर है- संदीप श्रीवास्तव
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